महाभारत का हस्तिनापुर आज कहां है?

हस्तिनापुर उत्तर प्रदेश में मेरठ से लगभग 40 किलोमीटर दूर पर प्राचीन नदी बूढ़ी गंगा के किनारे पर स्थित है इस नदी की एक धारा यहां के प्राचीन टीलो से होकर बहती है इस नगर को महाराज हस्तीन के द्वारा बसाया गया था इसलिए उनके नाम पर ही यहां का नाम हस्तिनापुर पड़ा महाराज हस्तीन के बाद आजमीढ़ राजा बने उसके बाद दक्ष राजा बने राजा दक्ष के बाद संवरण और फिर कुरु ने हस्तिनापुर पर राज किया|



राजा कुरु के वंश में आगे चलकर राजा सांतनु हुए शांतनु के पौत्र धृतराष्ट्र और पांडु हुए | जिनके पुत्रों को कौरव और पांडव कहा गया महाभारत से जुड़ी अधिकतर घटनाएं हस्तिनापुर में ही घटित हुई थी जो कौरव और पांडवों की राजधानी थी आज भी हस्तिनापुर में महाभारत काल से जुड़ी अवशेष मौजूद है

हस्तिनापुर में दफन पांडव के विशाल किले के अवशेष मिले हैं महाभारत काल की इस किले मेंट छः तल थे जिनके अवशेष आज भी हस्तिनापुर में मौजूद है पांडवों के किले के ये अवशेष ठीक प्रकार से देखभाल न होने के कारण अब नष्ट होने के कागार पर है इस विशालकाय किले के अंदर महल मंदिर और अन्य इमारतें थी जिनके अवशेषों को आज भी किले के खंडहरों में देखा जा सकता है|

हस्तिनापुर में पांडव किले के पास में पांडेश्वर महादेव मंदिर आज भी विद्यमान है पांडेश्वर महादेव मंदिर वही मंदिर है जहां पर पांडवो की रानी द्रोपती पूजा किया करती थी इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को पांच पांडवो की मूर्तियां महाभारत कालीन बताई जाती है इसका अंदाजा उसकी आकृति से लगाया जा सकता है इस मंदिर में स्थित शिवलिंग प्राकृतिक है यह शिवलिंग जलाभिषेक के कारण अब आधा रह गया है इस मंदिर के परिसर में एक विशाल बट वृक्ष भी मौजूद है



उसी वृक्ष के नीचे श्रद्धालु दीपक जलाकर पूजा अर्चना करते हैं इस मंदिर के पास प्राचीन शीतल जल का कुआं आज भी मौजूद है यह पांडेश्वर महामंदिर देश में ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध है इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पर आते हैं इस मंदिर पर शिवरात्रि के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है हस्तिनापुर में विदुर का किला बूढ़ी गंगा के किनारे स्थित है यह किला लगभग 50 से60 फिट ऊंचा है इस टीले को विदुरो का निवास स्थान कहा जाता है विदुर पांडु और धृतराष्ट्र के सौतेले भाई थे विदुर अपनी बुद्धि और अच्छी सुझाव के कारण प्रसिद्ध थे


इसके अलावा विदुर कौरवो के विद्वान मंत्री भी थे अब इस टीले को आनंद गिरी चमत्कारी आश्रम के नाम से जाना जाता है यहां पीपल का एक विशाल वृक्ष है वृक्ष के बारे में यह मान्यता है कहा जाता है की कौरवो , विदूरों और पांडवों के द्वारा रोपित किया गया था हस्तिनापुर में कर्णेश्वर मंदिर भी विद्यमान है कर्णेश्वर मंदिर का निर्माण लगभग 4000 ईसा पूर्व पांडेश्वर मंदिर के पास ही नदी गंगा के किनारे गंगा नदी के घाट में हुआ था कहा जाता है कि कर्ण ने इस मंदिर में स्वयं शिवलिंग की स्थापना की थी कर्ण घाट मंदिर पर सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण भगवान शिव की पूजा करने के पश्चात सवा मन सोना प्रतिदिन दान किया करते थे ऐसा माना जाता है

महाभारत काल में गंगा जी इसी स्थान से होकर गुजरती थी लेकिन वर्तमान समय में गंगा जी का प्रवाह इस स्थान से काफी दूर है अब यहां पर गंगा जी की एक विलुप्त धारा बनती है इस विलुप्त गंगा को बूढ़ी गंगा के नाम से भी जाना जाता है कर्ण घाट से थोड़ी ही दूर द्रौपदी घाट को बूढ़ी गंगा पुल के विपरीत दिशा में देखा जा सकता है द्रौपदी घाट मंदिर को उसी स्थान पर बनाया गया है जहां रानी द्रौपदी पूजा करने के लिए आया करती थी और प्रतिदिन पूजा किया करती थी

इस मंदिर के पास श्री कृष्ण का मंदिर भी विराजमान है हस्तिनापुर में आपको प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा हस्तिनापुर अभयारण्य 1886 में स्थापित किया गया था भारत की प्रमुख वन्य परियोजनाओं में से एक है जहां पर आप प्राकृतिक सौंदर्य को निहार सकते हैं इस अभयारण्य में अनेक प्रकार की जीव जंतु पाए जाते हैं वर्तमान समय में हस्तिनापुर जैन धर्म का मुख्य केंद्र है यहां जैन धर्म से संबंधित अनेकों मंदिर है

यहां पर श्री दिगम जैन बड़ा मंदिर हस्तिनापुर में सबसे बड़ा जैन मंदिर है यहां जैन धर्म के कई तीर्थकरो का जन्म हुआ था यही कारण है कि यहां पर काफी संख्या में जैन मंदिर मौजूद है इन्हीं जैन मंदिरों में से एक श्री दिगंबर जैन प्राचीन बड़ा मंदिर हस्तिनापुर में स्थित सबसे प्राचीन मंदिर है माना जाता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 1801 में किया गया था



इस मुख्य मुख्य मंदिर में प्रमुख देव सोलहवे जैन तीर्थ कर श्री शांतिनाथ पद्मासन अवस्था में विराजमान है यहां पर दोनों ओर 17 वे 18 वे तीर्थ कर श्री कुफू नाथ और श्री आरानाथ की मूर्ति भी स्थापित है यहां पर इसी परिसर में दर्जनों की संख्या में अन्य मंदिर और ऐतिहासिक मंदिरे स्थापित की गई है इस जैन मंदिर के अलावा हस्तिनापुर में जंबूद्वीप, जैन तीर्थ, कैलाश पर्वत रचना श्री श्वेतांबर मंदिर, अष्टपद मंदिर, सुमेरू पर्वत, लोटस टेंपल आदि भी स्थित है

जंबूद्वीप में सुमेरु पर्वत की ऊंचाई 101 फीट है यहां पर चेकाल्या नदी, पहाड़ियां और समुंद्र का झावा भी है हस्तिनापुर में कैलाश पर्वत 121 फीट ऊंची इमारत है इस मंदिर में मुख्य देव प्रसद नाथ की मूर्ति स्थापित की गई है जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थ करते हैं इसके अलावा इस मंदिर के परिसर में और भी बहुत सारे मंदिरों का निर्माण किया गया है इस मंदिर परिसर में लोटस टेंपल का निर्माण किया गया है जंबूद्वीप जैन समुदाय के सबसे प्रतिष्ठित तीर्थ स्थानों में से एक है

यह मंदिर अपने समृद्धि इतिहास, स्वच्छता, कायाकल्प अनुभव के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है इस तीर्थ का अधिकारिक नाम दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान है और इसका प्रमुख आकर्षण केंद्र जंबूद्वीप के प्रतिरूप में निर्मित पावन है जंबूद्वीप मंदिर अत्यंत सम्मानित और प्रसिद्ध जैन साध्वी श्री ज्ञानमतिमाता जी की अथक और समर्पित प्रयासों के द्वारा बनवाया गया था ऐसा माना जाता है कि साध्वी ने 1965 में दितीय पर्वत श्रेणी में भगवान बाहुबली की पवित्र मूर्ति के नीचे ध्यान लगाते हु एक स्वप्न देखा जिसमें उन्होंने मंदिरों के साथ 13 दीपों को देखा था

उसके बाद साध्वी ने मंदिर बनाने के लिए पूरे देश में पदयात्रा शुरू कर दी और अंत में हस्तिनापुरा पहुंची और इस पवित्र स्थान पर स्वप्न योजना को शुरू करने का निश्चय किया इस मंदिर की आधारशिला 1974 में रखी गई जो पूरी तरीके से 1885 में बनकर तैयार हुआ था

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