The Ant and the Grasshopper - चींटी और टिड्डा - in English and Hindi...
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The Ant and the Grasshopper
Once upon a time, in a sunny meadow, there lived an industrious ant and a carefree grasshopper. The ant worked tirelessly, gathering food for the winter, while the grasshopper spent his days singing and dancing, without a thought for the future.
As summer turned to autumn and the days grew colder, the ant continued to toil, storing away grains and seeds. But the grasshopper, enjoying the last warm rays of the sun, mocked the ant's hard work, believing there was plenty of time before winter.
When winter finally arrived, the meadow was blanketed in snow, and food became scarce. The ant retreated to his cozy underground burrow, where he had more than enough supplies to last through the cold months.
Meanwhile, the grasshopper, now shivering and hungry, went from door to door, begging for scraps. But nobody had anything to spare, and the grasshopper realized his folly.
Feeling regretful and ashamed, the grasshopper sought out the ant's burrow and humbly asked for help. The ant, though initially hesitant, took pity on the grasshopper and shared his provisions.
From that day on, the grasshopper learned the value of hard work and planning for the future. He promised himself never to be careless again and spent the following spring and summer gathering food alongside the ant, ensuring he would never go hungry again.
Moral of the Story: The story teaches us the importance of hard work, diligence, and planning for the future. It reminds us that while it's essential to enjoy life's pleasures, it's equally crucial to be responsible and prepare for challenges that lie ahead.
चींटी और टिड्डा
एक बार की बात है, एक धूपदार घास के मैदान में, एक मेहनती चींटी और एक लापरवाह टिड्डा रहते थे। चींटी ने अथक परिश्रम किया, सर्दियों के लिए भोजन इकट्ठा किया, जबकि टिड्डा भविष्य के बारे में सोचे बिना, गायन और नृत्य में अपने दिन बिताता था।
जैसे-जैसे ग्रीष्म ऋतु शरद ऋतु में बदल गई और दिन ठंडे होते गए, चींटी ने परिश्रम करना जारी रखा, अनाज और बीज जमा करना जारी रखा। लेकिन टिड्डे ने, सूरज की आखिरी गर्म किरणों का आनंद लेते हुए, चींटी की कड़ी मेहनत का मज़ाक उड़ाया, यह विश्वास करते हुए कि सर्दियों से पहले बहुत समय था।
जब आख़िरकार सर्दियाँ आईं, तो घास का मैदान बर्फ से ढक गया, और भोजन दुर्लभ हो गया। चींटी अपने आरामदायक भूमिगत बिल में चली गई, जहाँ उसके पास ठंड के महीनों के लिए पर्याप्त सामान था।
इस बीच, टिड्डा, जो अब कांप रहा था और भूखा था, घर-घर जाकर टुकड़ों की भीख मांग रहा था। लेकिन किसी के पास कुछ भी नहीं था, और टिड्डे को अपनी मूर्खता का एहसास हुआ।
पछतावा और शर्म महसूस करते हुए, टिड्डे ने चींटी के बिल की तलाश की और विनम्रतापूर्वक मदद मांगी। चींटी, हालांकि शुरू में झिझक रही थी, उसे टिड्डे पर दया आ गई और उसने उसे खाना बाँट दिया।
उस दिन से, टिड्डे ने कड़ी मेहनत और भविष्य के लिए योजना बनाने का मूल्य सीख लिया। उसने खुद से वादा किया कि वह फिर कभी लापरवाह नहीं होगा और अगले वसंत और गर्मियों में चींटी के साथ भोजन इकट्ठा करने में बिताया, यह सुनिश्चित करते हुए कि वह फिर कभी भूखा नहीं रहेगा।
कहानी का सार: कहानी हमें कड़ी मेहनत, परिश्रम और भविष्य के लिए योजना बनाने का महत्व सिखाती है। यह हमें याद दिलाता है कि जहां जीवन के सुखों का आनंद लेना आवश्यक है, वहीं जिम्मेदार होना और आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
this is the best moral story
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